Wednesday, December 30, 2015

मैराथन
एक शाम को मेरे पास नीरज भाई का फोन आया उन्होंने बताया की वो एक फ़िल्म शुरू करने जा रहें है जिसमे उनको मेरी भी जरूरत है
मैंने बिना कुछ सोचे समझे उनको हाँ बोल दिया अगले दिन मैं उनसे मिला उन्होंने मुझे पूरी कहानी सुनाई ।कहानी बड़ी ही जबरदस्त थी बड़ा मजा आया सुन कर ।मुझे लगा की वक़्त ने मुझे मोका दे दिया है कुछ करने का ।उस समय मैं भी नया था एक फ़िल्म बनाने के लिए मेरी समझ सिर्फ किताबी थी ।पहली बार उस ज्ञान को वास्तविक रूप देने का मौका मिला था । वो पल मुझे खुसी से भर गया था।मैने अपने हिसाब से उस कहानी को अपने मन में फिल्मा लिया था ।लेकिन अब मुद्दा ये था की जो मैने सोचा था क्या वो होगा ।मुझे कुछ भी पता नहीं था ।क्योकि प्रचलन में जो फिल्मो में हुआ करता है वहा जो डारेक्टर कहता है सिर्फ वही होता है चाहे वो सही हो या गलत ।मेरा फिल्मो में पिछला अनुभव कुछ ऐसा ही था ।लेकिन अब मुझे कुछ ज़िमेदारी के साथ अपनी सोच को वास्तविक रूप में करने का मौका भी मिला था ।मुझे नीरज भाई ने अपनी सोच को जीने की स्वतंत्रता दे दी ।वो अनुभव बडा जबरदस्त था
अब बारी आई पहले दिन की शूटिंग की हम लोग सातारा में थे पूरी फ़िल्म की टीम सबके हाथ में पुरे दिन का शेड्यूल था सबने अपनी अपनी लोकेसन पे अपना काम संभाल लिया सुबह के 4 बजे सब लोग मैराथन ग्राउंड पे पहुँच गए ।सातारा मैराथन सुरु होने में कुछ मिनट बाकी थे सबने अपनी अपनी जगह संभाल ली थी । नीरज भाई जो की इस फ़िल्म में लेखक एक्टर की भूमिका में थे सबको उनके आज के पुरे काम के बारे में समझा रहे थे
कुछ ही देर में रेस सुरु हो गयी और उनको कवर करने वाली कैमरा टीम उनके साथ निकल पड़ी।लेकिन मैं जो चाहता था वो नहीं हो पाया ।उसका कारण सिर्फ ये था की ये कोई डेमो मैराथन नहीं थी ये एक वास्तविक मैराथन थी । अब मुझे उन वास्तविक पलो को एक फ़िल्म के हिसाब से समझने में असहजता महसूस हो रही थी ।क्यों की हमारी फिल्मो में जब तक भरपूर दृश्यो का पैकेज ना हो वो सही समझ नहीं आता यही बात फिल्मो से जुड़े विशेष्यग भी कहतें है।
कुल मिला कर मुझे कुछ अच्छी सुरुवात समझ नहीं आई।
अब अगला काम और भी मुश्किल हो गया हमको अपनी फ़िल्म के हिसाब से अपने पात्र को जितना था लेकिन यहाँ पे कुछ भी हमारी मर्जी से नहीं हो रहा था क्यों की ये एक वास्तविक मेराथोन थी अब मुश्किल ये हो गयी की हमको जिन सीन की जरूरत थी उनको कैसे फिल्माया जाये जब भी हम कोई सिन सुरु करते कोई ना कोई बिच में आजाता था उनको समझाने के बावजूद भी अचानक कोई आ टपकता था हमारे कैमरा मैन को झुंझलाहट हो रही थी लेकिन हमारी टीम में एक सरल और सहज वक्तित्व का आदमी भी था मिस्टर अंजनी कुमार सिंह ये बड़े सहज थे लेकिन इनको काम को सही तरीके से निकलने का पूरा ज्ञान था एक तरीके से बोला जाए तो इन भाई साहब को हर टेढ़ी चीज को सीधा करना आता था वो भी बड़े प्यार के साथ अब इनकी चर्चा आगे की जाए गी। बहरहाल अंजनी भाई ने आगे का काम संभाला लोगो को बड़े प्यार से समझा कर ये मनवा लिया की वो भी हमारी फ़िल्म का हिस्सा हैं और इस फ़िल्म को बनाने में उनकी ज़िमेदारी की पूरी जरूरत है । अब जो हुआ वो कमाल था सब लोग हमारी मदद करने के लिए तैयार हो गए ।वहा पे जो सीन किये जाने थे वो अब आसानी से हो गए ।तभी मेरे पास फिब आया वो फिन नीरज भाई का था उन्होंने मुझसे पूछा की वहां का काम हमने निपटा लिया हो तो आगे के सीन करने के लिए दूसरी लोकेसन पे आजायें ।लेकिन अभी यहाँ का काम पूरा ही नहीं हुआ था अभी यहाँ एक और मुश्किल खड़ी थी हमारा अगला सीन था दर्शको को हमारे जितने वाले किरदार के पछ में उसका उत्साह बढ़ाना और उसमे भी मुश्किल यह थी की एक खूबसूरत लड़की का हमारे किरदार को i love u बोलना अब हमारे पास कोई आर्टिस्ट तो था नहीं जिनसे ये करवाया जाए फिर मुझे इस काम पे लगना पड़ा।वहां भीड़ में किसको पुछु ये मेरी सबसे बड़ी दुविधा थी फिर मैंने एक खूबसूरत लड़की जो की काफी उत्साह से सब दौड़ने वालो का उत्साह बड़ा रहीं थी उनसे जाके पूछा ।पहले तो उन्होंने मना कर दिया फिर जब मैने उनको फ़िल्म के बारे में बताया तो उन्होंने हा बोल दिया ।हमारी सतारा ग्राउंड की शूटिंग पूरी हो गयी।
अब बारी आई और भी बाकी के सिन लेने की जो की रेस के दौरान लिए जाने थे।यहाँ पे एक और नयी बात हो गयी जो की अमूमन फिल्मो में नहीं होती हमारे मुख्य कलाकार मतलब हमारी फ़िल्म के हीरो वो लगातार दौड़ते जा रहे थे पहले उन्होंने पूरी मैराथन दौड़ी फिर अब जो सिन बाकी रह गए थे उनको पूरा करने के लिए फिर से उनको दौड़ना था ।जब मैं उनके पास गया तो उनके चेहरे पे थकान साफ़ साफ़ दिख रही थी लेकिन अभी कुछ सीन बाकी थे तो माइन उनसे पूछा की भाई अभी और दौड़ना है आगे के सीन करने के लिए मुझे लगा उनका जवाब अब ये होगा की भी थोडा रुक जाओ बाद में करतें है ।लेकिन मुझे हैरानी हुयी जब उन्होंने कहा भाई तुम लीग लेट कर रहे हो अभी बहोत से सीन बाकी है जड़ी से सीन लगाओ ।
मैने सोचा क्या आदमी है ये जो अभी इतना दौड़ के आया है फिर भी दौड़ लगाने को तैयार है वो भी पूरी ऊर्जा के साथ। इसी समय मुझे इस बात का एहसास हो गया की सायद यही मैराथन है जब आप थक चुके हो फिर भी मंजिल दूर दिखे और आप पूरी ऊर्जा फिर से अपने दौड़ में झोंक दो तभी सही मंजिल मिलेगी ।ये इस फ़िल्म को बनाते हुए मुझे पहला सबक मिला ।

Tarun Pandey
Creative Director
Jeet Lo Marathon
www.marathonthefilm.in

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